लद्दाख में होगी अमेरिकी स्ट्राइकर की एंट्री! ,चीन के खिलाफ भारत उतारेगा 'ब्रम्हास्त्र'

चीन हमेशा से ही भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है। 2020 में लद्दाख सीमा पर उसके दुस्साहस ने भारत को अत्याधुनिक हथियारों की दौड़ में शामिल होने पर मजबूर कर दिया है। इसीलिए अब भारत अपनी सेना के लिए अमेरिकी स्ट्राइकर आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल हासिल करने की कोशिश कर रहा है। विशेषज्ञ इसे ब्रह्मास्त्र बता रहे हैं और कहा जा रहा है कि इसे लद्दाख में तैनात किया जा सकता है। अगर यह सेना को मिल जाता है तो पूर्वी लद्दाख और सिक्किम जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में भारतीय सेना की ताकत काफी बढ़ जाएगी।
भारतीय सेना अपने आधुनिकीकरण के दौर से गुजर रही है। पुराने सैन्य साजो-सामान को नए और आधुनिक साजो-सामान से बदलने की प्रक्रिया चल रही है। भारत आत्मनिर्भर बनना चाहता है और वह भी स्वदेशी हथियारों के बल पर। पहले पश्चिमी सीमा पर ज्यादा फोकस रहता था... लेकिन अब चीन की सीमा से लगे उत्तरी और पूर्वी सेक्टरों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। 2020 में भारत ने पूर्वी लद्दाख में चीनी आक्रामकता का बेहतर तरीके से जवाब दिया। कम समय में ही टैंक, आर्टिलरी गन, इन्फेंट्री व्हीकल, रडार सिस्टम, मिसाइल सिस्टम जैसे भारी हथियार पहुंचाकर चीनी पीएलए को बैकफुट पर ला दिया और अब ज्यादा से ज्यादा ऐसे उपकरणों को शामिल करने की गति बढ़ा दी गई है, जो मैदानी इलाकों, रेगिस्तान और ऊंचाई वाले इलाकों में अपने काम को बेहतरीन तरीके से अंजाम दे सकें।
अब अमेरिकी स्ट्राइकर की एंट्री
भारतीय सेना की मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री में करीब 2000 रूसी आईसीवी बीएमपी-2 हैं। इनमें दो तरह के इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल हैं। एक ट्रैक्ड यानी टैंक की तरह ट्रैक पर चलने वाले और दूसरे व्हील्ड यानी टायर वाले। अब भारतीय सेना ने व्हील्ड इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल को बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। स्वदेशी कंपनियों के साथ-साथ विदेशी कंपनियों ने भी अपनी दावेदारी पेश की है। सूत्रों के मुताबिक आईसीवी स्ट्राइकर बनाने वाली अमेरिकी कंपनी भारतीय सेना को आईसीवी बेचने की इच्छुक है। बताया यह भी जा रहा है कि बातचीत अंतिम चरण में है। वैसे तो आईसीवी स्ट्राइकर का इस्तेमाल अमेरिका समेत कई अन्य देशों की सेनाएं कर रही हैं, लेकिन हर देश अपनी चुनौतियों के हिसाब से हथियार और उपकरण खरीदता है। भारत भी इसी तर्ज पर खरीदारी कर रहा है। इसके लिए सेना नो कॉस्ट नो कमिटमेंट पॉलिसी के तहत ट्रायल भी करवाती है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में स्ट्राइकर को लद्दाख में ट्रायल के लिए भी तैनात किया जा सकता है। यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि चीनी पीएलए से निपटने के लिए भविष्य में अमेरिकी स्ट्राइकर की एंट्री हो सकती है।
क्यों खास है अमेरिकी स्ट्राइकर
अगर स्ट्राइकर की खासियत की बात करें तो यह 8 व्हील ड्राइव कॉम्बैट व्हीकल है। इसमें 30 एमएम गन और 105 मोबाइल गन लगी हैं। इसकी रेंज 483 किलोमीटर है और यह 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकता है। यह सैनिकों की सुरक्षा के लिए बोल्ट-ऑन सिरेमिक आर्मर्ड प्रोटेक्शन से लैस है। यह दुश्मन के हवाई हमलों, लैंडलाइन और आईडी से आसानी से बचाव कर सकता है। खास बात यह है कि इसे चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में पहुंचाया जा सकता है। स्ट्राइकर के अलग-अलग वैरिएंट हैं। इनमें इंफैंट्री कैरियर, मोबाइल गन सिस्टम, मेडिकल इवैक्यूएशन, फायर सपोर्ट, एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल कैरियर शामिल हैं। भारतीय सेना को एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल कैरियर की जरूरत है। हालांकि, भारतीय सेना के पास बीएमपी-2 है, जिसकी एक बड़ी खासियत यह है कि यह उभयचर हो सकता है यानी नदी-नालों को आसानी से पार कर सकता है। स्ट्राइकर में यह खासियत नहीं है। लेकिन ऊंचाई वाले इलाकों के कम तापमान में बीएमपी का रखरखाव मुश्किल होता है। अगर आईसीवी पहिएदार है तो इसका रखरखाव आसान है।
ब्रह्मोस जैसी तकनीक हस्तांतरण
भारत की स्पष्ट नीति है कि अगर स्ट्राइकर यह रेस जीतता है तो मेक इन इंडिया के तहत इन आईसीवी का सह-उत्पादन और सह-विकास करना होगा। इसके साथ ही महत्वपूर्ण तकनीक हस्तांतरित की जाएगी। जैसे इजराइल की मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और ब्रह्मोस का निर्माण रूस के सहयोग से भारत में हो रहा है, उसी तरह इसका निर्माण भी हो सकता है। भारत में डीआरडीओ ने वर्ष 2013-14 में 8 पहियों वाला WhAP यानि व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म विकसित किया है जो एक बख्तरबंद व्यक्तिगत वाहक वाहन है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि इसे पैदल सेना के लड़ाकू वाहन के रूप में किस हद तक इस्तेमाल किया जा सकता है।
बीएमपी-2 को चरणबद्ध तरीके से हटाने की तैयारी
भारतीय सेना के भारी टैंक और बख्तरबंद तथा यांत्रिक इन्फैंट्री के बीएमपी-2 चीन के मोर्चे पर लद्दाख और सिक्किम में तैनात हैं। अगर भारतीय सेना की मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की बात करें तो इस समय भारतीय मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में कुल 50 बटालियन हैं और प्रत्येक बटालियन में 52 आईसीवी हैं। इनमें कई पहिएदार और ट्रैक्ड आईसीवी शामिल हैं। भारतीय सेना पहले चरण में 9 बटालियनों को नए आधुनिक आईसीवी से बदलने जा रही है। इन 50 बटालियनों में 11 रेकी और सपोर्ट बटालियन शामिल हैं, जबकि 39 मानक मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री बटालियन हैं। भारतीय सेना को पहले चरण में करीब 500 नए आधुनिक आईसीवी लेने हैं और इसके लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) भी जारी कर दिया गया है। चूंकि आत्मनिर्भर भारत के तहत अधिकतम उपकरण लिए जाने हैं, इसलिए करीब 15 स्वदेशी कंपनियों ने इस श्रेणी में अपने उत्पाद प्रस्तावित भी किए हैं। कुछ कंपनियों ने कुछ तरह के बदलाव की बात भी कही है, इसलिए सेना फिर से नया आरएफपी जारी कर सकती है। तकनीक युद्ध में बढ़त हासिल करने में मदद कर सकती है, लेकिन अगर जमीन पर लड़ने और दुश्मन के इलाके पर कब्जा करने की जरूरत हो तो ऐसा सिर्फ मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री ही कर सकती है। ऐसे में दुश्मन के डिफेंस और टैंकों को तबाह करते हुए दुश्मन के हवाई हमले से जवानों की रक्षा करते हुए युद्ध में बढ़त हासिल करने के लिए सबसे जरूरी है इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल।
चीनी मोर्चे के लिए खास तैयारी
यह नहीं कहा जा सकता कि चीन 2020 में फिर वही गलती नहीं करेगा। इसलिए भारतीय सेना ने ऊंचाई वाले इलाके में युद्ध लड़ने और जीतने के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दिया है। अगर सेना की बात करें तो सेना का पूरा फोकस अब उत्तरी सीमा पर है। इसी के मद्देनजर सेना ने चीन के खिलाफ एलएसी पर तैनाती के लिए खास तौर पर 100 अतिरिक्त के-9 वज्र लेने का फैसला किया है। वो भी खास तौर पर ऊंचाई वाले इलाकों के लिए। चूंकि 100 K-9 वज्र तोपें पहले से ही भारतीय सेना में शामिल हैं और इन्हें पाकिस्तान सीमा के पास रेगिस्तान में चलाने के लिए खरीदा गया था, लेकिन जैसे ही पूर्वी लद्दाख में विवाद बढ़ा, इन तोपों को ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात कर दिया गया. वहां तापमान -20 तक चला जाता है. चूंकि माइनस तापमान वाले इलाकों में तेल, लुब्रिकेंट, बैटरी और कई दूसरी समस्याएं आती हैं, इस वजह से अब उन 9 चीजों और फायर एंड कंट्रोल सिस्टम में बदलाव के साथ 100 अतिरिक्त K-9 वज्र तोपें खरीदी जा रही हैं.