विष्णु महायज्ञ के छठवें दिन कथा वाचक विरेंद्र तिवारी के प्रबचन सुन श्रोताओं ने लगाया गोता

कुशीनगर ।। फाजिलनगर विकासखंड क्षेत्र के जौरा बाजार स्थित राम जानकी मंदिर के परिसर में चल रहे श्री विष्णु महायज्ञ यज्ञ के छठवें दिन राजा हरिश्चंद्र और तारा मति का कथा सुनकर शोताओं के आखों में पानी आ गया। कथा का सूरा शुभारंभ पूर्व प्रधान मनीष तिवारी ने पूजन अर्चन कर किया।
कथा व्यास वीरेंद्र तिवारी ने कहा की सत्य की चर्चा जब भी की जाती है, राजा हरिश्चन्द्र का नाम जरूर लिया जाता है। राजा हरिश्चंद्र सच बोलने और वचनपालन के लिए प्रसिद्ध थे। ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की प्रसिद्धि सुनी। वे स्वयं इसकी परीक्षा लेना चाहते थे। राजा हरिश्चंद्र हर हालत में केवल सत्य का ही दामन थामते थे।
एक बार राजा हरिश्चन्द्र ने सपना देखा कि उन्होंने अपना सारा राजपाट महर्षि विश्वामित्र जी को दान में दे दिया है। अगले दिन जब विश्वामित्र उनके महल में आए तो उन्होंने विश्वामित्र को अपना राज्यसौंप दिया। जाते-जाते विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी। विश्वामित्र ने राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं किया जाता। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पूरी नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को शमशान के चांडाल से बिक कर सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान दे दी।
एक दिन सर्पदंश से इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिए कर मांगा के रानी तारा ने अपनी साडी को फाड़कर कर चुकाना चाहा, तभी आसमान में बिजली चमकी तो उस बिजली की रोशनी में हरिश्चंद्र को उस अबला स्त्री का चेहरा नजर आया, वह स्त्री उनकी पत्नी तारामती थी और उसके हाथ में उनके पुत्र रोहित का शव था। अपनी पत्नी की यह दशा और पुत्र के शव को देखकर हरिश्चंद्र बेहद भावुक हो उठे। उस दिन उनका एकादशी का व्रत भी था और परिवार की इस हालत ने उन्हें हिलाकर रख दिया।
उनकी आंखों में आंसू भरे थे लेकिन फिर भी वह अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए आतुर थे। भारी मन से उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि जिस सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपना महल, राजपाट तक त्याग दिया, स्वयं और अपने परिवार को बेच दिया, आज यह उसी सत्य की रक्षा की घड़ी है। उसी समय आकाशवाणी हुई और स्वयं प्रभू प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा “हरिश्चन्द्र! तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।
इस दौरान नंदलाल विद्रोही,राकेश साहनी,प्रमोद भंडारी,रीना मिश्रा,बंदना, अमृता तिवारी,नीलम तिवारी,रीता यादव, सुनीता देवी,रेखा राजनंदनी,अवधेश सिंह,आलोक पाण्डेय,उपेंद्र यादव,मिंटू सिंह, पप्पू पांडे,प्रमोद भंडारी,सोनू शर्मा,प्रिंस चौहान,मदन यादव,बबलू गुप्ता,राधेश्याम यादव,काशी सिं, गुड्डू यादव,चंद्रदेव चौरसिया,आदि लोग रहे।